"Some days when I am able to pick a pen and write, I know I have been blessed."~Savita

Welcome to my blog. In my quiet hours I seek to touch the depth of myself and my surroundings. My thoughts that take form of poetry are just the scratches on the surface of life as it reveals to me. Wrapped in a delicate veil of symbolism and ambiguity these verses and expressions also fulfill my desire to share a bit of my self with others. I hope reading them would be as enjoyable for you as writing them has been for me.

Wednesday, January 25, 2023

बरसों पहले….. (Long Time Back)

 बरसों पहले का एक वो ज़माना था

हुस्नो अन्दाज़ अपना लाजवाब था

साज़ के छिड़ते ही पैर थिरकते थे
और दिल दिवाना मचलता था

पायल बजती थी, घुगंरू छनकते थे
चूड़ी की छमछम से गीत निकलते थे

चेहरे से जब हम ज़ुल्फ़ें हटाते थे
घटाओं के पीछे से चाँद निकलता था

हँसी में हमारी मोती बरसते थे
कजरारे नयनों से जाम छलकते थे

चलते थे तब हम सागर की लहरों पर
चाहतों से अपनी तूफ़ान उमड़ते थे

शामें हमसे पूछ कर करवटें बदलती थी
सासों की गरमी से शमा पिघलती थी

वाक़िफ़ थे कुछ कुछ वजाहत से अपनी
यों आंचल उड़ा कर हवाओं को बाँधते थे

मासूम थे तब नादान भी कितने कि
तोहफे ये तुम पर लुटाने चले थे

नहीं ये पता था कि क्या दे रहे हैं
ठुकरा के जिसको वो रुखसत हुए थे

जिन्दगी की राह में फिर वो हमदम मिले हैं
घङी साथ में कुछ बिताने चले हैं

पूछते हैं अक्सर वो कैसा जमाना था
दिल हमने उनको देना जब चाहा था

एहसास अब क्यों वो हमको दिलाते हैं
खोया है कुछ जो माँगना चाहते हैं

भोले हैं कितने नादान हैं कितने
ये क्या चाहते हैं ये क्या माँगते हैं ।।

12.30.2000


Savita Tyagi


No comments:

Post a Comment