बरसों पहले का एक वो ज़माना था
हुस्नो अन्दाज़ अपना लाजवाब था ।
साज़ के छिड़ते ही पैर थिरकते थे
और दिल दिवाना मचलता था ।
पायल बजती थी, घुगंरू छनकते थे
चूड़ी की छमछम से गीत निकलते थे ।
चेहरे से जब हम ज़ुल्फ़ें हटाते थे
घटाओं के पीछे से चाँद निकलता था ।
हँसी में हमारी मोती बरसते थे
कजरारे नयनों से जाम छलकते थे ।
चलते थे तब हम सागर की लहरों पर
चाहतों से अपनी तूफ़ान उमड़ते थे ।
शामें हमसे पूछ कर करवटें बदलती थी
सासों की गरमी से शमा पिघलती थी ।
वाक़िफ़ थे कुछ कुछ वजाहत से अपनी
यों आंचल उड़ा कर हवाओं को बाँधते थे ।
मासूम थे तब नादान भी कितने कि
तोहफे ये तुम पर लुटाने चले थे ।
नहीं ये पता था कि क्या दे रहे हैं
ठुकरा के जिसको वो रुखसत हुए थे ।
जिन्दगी की राह में फिर वो हमदम मिले हैं
घङी साथ में कुछ बिताने चले हैं ।
पूछते हैं अक्सर वो कैसा जमाना था
दिल हमने उनको देना जब चाहा था ।
एहसास अब क्यों वो हमको दिलाते हैं
खोया है कुछ जो माँगना चाहते हैं ।
भोले हैं कितने नादान हैं कितने
ये क्या चाहते हैं ये क्या माँगते हैं ।।
12.30.2000
Savita Tyagi
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