किसे याद रखें किसे भूल जायें
अपनों के बीच क्यों ये गैर याद आयें
जानी पहचानी थी वो छोटी सी दुनियॉ
बाबुल का अंगना और सखियों की गलियॉ
वक्त ने बदल ली हमसे छुप के करवट
अजनबी हैं रास्ते अब अजनबी हैं वादियाँ
किसे पहचाने किसे हम बुलायें
धुधंली सी पड़ गयी हैं रिश्तो की कहानियाँ
अपनी समझ के गली में बढ़े कदम
भूल गये ठौर पर वो सांकलें चढ़ी थी बन्द
किससे नजर मिलायें गुफ्तगू करें कहँा
बचपना तो खो गया बेजार हैं जवानियाँ
भटकते रहे घन्टो पीरे दरगाह पर
सजदे किये हजारों मन्नतें भी माँगी
फिर भी नजर न आया वो नूरानी चेहरा
देखते थे जिसको दियो की कतार में
घड़ी थाम के हम तो बैठे थे कबसे
दामन में चाहा था वक्त को छुपाना
खुद ही छुप रहे हैं अब ढलती शाम के संग
धुधंलुका घिरा कब ये नही हमने जाना
कैसी दिवाली कैसी वो होली
रगं पुराने हैं यादों में समाये
पहचान सकते तो पहचान लेते
मगर चढ़ चुके हैं ऐ वतने माटी
तुझ पर भी मुझ पर भी रंग कुछ पराये
किसे याद रक्खे किसे भूल जायें
अपनो के बीच क्यों ये गैर याद आयें ।
अगर अल्फाज़ लमहे होते तो यह हर लमहा हमने जिया है ।
अपनों के बीच क्यों ये गैर याद आयें
जानी पहचानी थी वो छोटी सी दुनियॉ
बाबुल का अंगना और सखियों की गलियॉ
वक्त ने बदल ली हमसे छुप के करवट
अजनबी हैं रास्ते अब अजनबी हैं वादियाँ
किसे पहचाने किसे हम बुलायें
धुधंली सी पड़ गयी हैं रिश्तो की कहानियाँ
अपनी समझ के गली में बढ़े कदम
भूल गये ठौर पर वो सांकलें चढ़ी थी बन्द
किससे नजर मिलायें गुफ्तगू करें कहँा
बचपना तो खो गया बेजार हैं जवानियाँ
भटकते रहे घन्टो पीरे दरगाह पर
सजदे किये हजारों मन्नतें भी माँगी
फिर भी नजर न आया वो नूरानी चेहरा
देखते थे जिसको दियो की कतार में
घड़ी थाम के हम तो बैठे थे कबसे
दामन में चाहा था वक्त को छुपाना
खुद ही छुप रहे हैं अब ढलती शाम के संग
धुधंलुका घिरा कब ये नही हमने जाना
कैसी दिवाली कैसी वो होली
रगं पुराने हैं यादों में समाये
पहचान सकते तो पहचान लेते
मगर चढ़ चुके हैं ऐ वतने माटी
तुझ पर भी मुझ पर भी रंग कुछ पराये
किसे याद रक्खे किसे भूल जायें
अपनो के बीच क्यों ये गैर याद आयें ।
अगर अल्फाज़ लमहे होते तो यह हर लमहा हमने जिया है ।